जंगल जलेबी या गंगा जलेबी या किकर (राजस्थान) (वानस्पतिक नाम: Pithecellobium ) एक सपुष्पी पादप है। यह मटर के प्रजाति का है। इसका फल सफ़ेद और पूर्णतः पक जाने पर लाल हो जाता है खाने में मीठा होता है। यह फल मूलतः मेक्सिको का है और दक्षिण पूर्व एशिया में बहुतायत से पाया जाता है. फिलिप्पीन में न केवल इसे कच्चा ही खाया जाता है बल्कि चौके में भी कई प्रकार के व्यजन बनाने में प्रयुक्त होता है. इस फल में प्रोटीन, वसा, कार्बोहैड्रेट, केल्शियम, फास्फोरस, लौह, थायामिन, रिबोफ्लेविन आदि तत्व भरपूर मात्र में पाए जाते हैं. इसके पेड की छाल के काढे से पेचिश का इलाज किया जाता है. त्वचा रोगों, मधुमेह और आँख के जलन में भी इसका इस्तेमाल होता है. पत्तियों का रस दर्द निवारक का काम भी करती है और यौन संचारित रोगों में भी कारगर है . इसके पेड की लकड़ी का उपयोग इमारती लकड़ी की तरह ही किया जा सकता है.पेड़ की लम्बाई मध्यम होती है. पर इसपे चढ़ना बहुत ही कठिन होता है.इसकी टहनियां काफी घनी होती है इसलिए जब भी आपको इसे खाने का इक्क्षा करे तो लग्गी लेकर जाना न भुलें क्योंकि यह अत्यंत कटिली होती है।.
जंगल जलेबी
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जंगल जलेबी या गंगा जलेबी या किकर (राजस्थान) (वानस्पतिक नाम: Pithecellobium ) एक सपुष्पी पादप है। यह मटर के प्रजाति का है। इसका फल सफ़ेद और पूर्णतः पक जाने पर लाल हो जाता है खाने में मीठा होता है।
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यह पौधा सिर्फ डंठल के आकार में लताओं के समान है। हरे रंग के डंठल वाले इस पौधे को सोमवल्ली लता भी कहा जाता है।
पत्थरचट्टा एक प्रकार का पौधा होता है। आयुर्वेद के अनुसार इसमें कई औषधीय गुण होते हैं और ये किड़नी में पथरी की समस्या को खत्म करने में बेहद कारगर होता है।
खिरनी या माइमोसॉप्स हेक्जैंड्रा (Mimosops hexandra) ४०-५० फुट ऊँचा घना वृक्ष है, जो उत्तरी भारत में स्वत: उगता है, अथवा उगाया जाता है। इसमें पीले छोटे फल लगते हैं, जो खाने में काफी मीठे और स्वादिष्ठ होते हैं। वृक्ष की छाल औषधि के कार्य में आती है। बीज से तेल निकाला जाता है। इसकी लकड़ी बहुत मजबूत होती है।