बोतल वृक्ष एक वृक्ष है। इसकी आठ प्रजातियाँ पाई जाती हैं। जिनमें से छः मेडागास्कर, एक अफ्रीका तथा एक आस्ट्रेलिया की मूल प्रजाति है। इस वृक्ष की ऊँचाई ५ से ३० मीटर (१६ से ९८ फीट) तथा तने का व्यास ७ से ११ मीटर (२३ से ३६ फीट) तक होता है।
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सतावर अथवा शतावर (वानस्पतिक नाम: Asparagus racemosus / ऐस्पेरेगस रेसीमोसस) लिलिएसी कुल का एक औषधीय गुणों वाला पादप है। इसे ‘शतावर’, ‘शतावरी’, ‘सतावरी’, ‘सतमूल’ और ‘सतमूली’ के नाम से भी जाना जाता है।
अपराजिता (वानस्पतिक नाम:Clitoria ternatea) एक खरपतवार है।
अपराजिता लता वाला पौधा है। इसके आकर्षक फूलों के कारण इसे लान की सजावट के तौर पर भी लगाया जाता है। ये इकहरे फूलों वाली बेल भी होती है और दुहरे फूलों वाली भी। फूल भी दो तरह के होते हैं – नीले और सफेद।
कल्पवृक्ष देवलोक का एक वृक्ष। इसे कल्पद्रुप, कल्पतरु, सुरतरु देवतरु तथा कल्पलता इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार समुद्रमंथन से प्राप्त 14 रत्नों में कल्पवृक्ष भी था। यह इंद्र को दे दिया गया था और इंद्र ने इसकी स्थापना सुरकानन में कर दी थी। हिंदुओं का विश्वास है कि कल्पवृक्ष से जिस वस्तु की भी याचना की जाए, वही यह दे देता है। इसका नाश कल्पांत तक नहीं होता। ‘तूबा’ नाम से ऐसे ही एक पेड़ का वर्णन इस्लामी धार्मिक साहित्य में भी मिलता है जो सदा अदन (मुसलमानों के स्वर्ग का उपवन) में फूलता फलता रहता है।