अर्जुन वृक्ष भारत में होने वाला एक औषधीय वृक्ष है। इसे घवल, ककुभ तथा नदीसर्ज (नदी नालों के किनारे होने के कारण) भी कहते हैं। कहुआ तथा सादड़ी नाम से बोलचाल की भाषा में प्रख्यात यह वृक्ष एक बड़ा सदाहरित पेड़ है। लगभग 60 से 80 फीट ऊँचा होता है तथा हिमालय की तराई, शुष्क पहाड़ी क्षेत्रों में नालों के किनारे तथा बिहार, मध्य प्रदेश में काफी पाया जाता है। इसकी छाल पेड़ से उतार लेने पर फिर उग आती है। छाल का ही प्रयोग होता है अतः उगने के लिए कम से कम दो वर्षा ऋतुएँ चाहिए। एक वृक्ष में छाल तीन साल के चक्र में मिलती हैं।
अर्जुन वृक्ष
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अर्जुन वृक्ष भारत में होने वाला एक औषधीय वृक्ष है।
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बहेड़ा या बिभीतकी (Terminalia bellirica) के पेड़ बहुत ऊंचे, फैले हुए और लंबे होते हैं। इसके पेड़ 18 से 30 मीटर तक ऊंचे होते हैं जिसकी छाल लगभग 2 सेंटीमीटर मोटी होती है। इसके पेड़ पहाडों और ऊंची भूमि में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं।
गूलर (Ficus racemosa) फिकस कुल (Ficus) का एक विशाल वृक्ष है। इसे संस्कृत में उडुम्बर, बांग्ला में डुमुर, मराठी में उदुम्बर, गुजराती में उम्बरा, अरबी में जमीझ, फारसी में अंजीरे आदमसकी शाखाओं में से फल उत्पन्न होते हैं। फल गोल-गोल अंजीर की तरह होते हैं और इसमें से सफेद-सफेद दूध निकलता है। इसके पत्ते लभेड़े के पत्तों जैसे होते हैं। नदी के उदुम्बर के पत्ते और फूल गूलर के पत्तों-फल से छोटे होते हैं।
हिमालयन क्षेत्र में मिलने वाला दुर्लभ कमीला यानी सिंदूर का पौधा अब मैदानी क्षेत्रों में भी उगाया जाने लगा है।
इसके फल लाल से भूरे रंग के होते हैं, तथा स्वाद में बहुत खट्टे होते हैं।
पत्थरचट्टा एक प्रकार का पौधा होता है। आयुर्वेद के अनुसार इसमें कई औषधीय गुण होते हैं और ये किड़नी में पथरी की समस्या को खत्म करने में बेहद कारगर होता है।